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Youth attracted to live-in relations which lack social sanction, high time that we save moral values in society: Allahabad HC

Writer's picture: Anupam DubeyAnupam Dubey

Silhouetted couple kissing at sunset; text discusses youth's attraction to live-in relationships lacking social sanction, Allahabad HC.

Youth is attracted to live-in relations, which lack social sanction. It's high time that we save moral values in society!

यह विचार इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस नलिन कुमार श्रीवास्तव ने CRIMINAL APPEAL No. - 10657 of 2024 'Mahendra Kumar Vs State of UP and Anr' की सुनवाईं के दौरान व्यक्त किए।


उनहोंने विधिवत टिप्पणी की और कहा कि “जहां तक ​​लिव-इन रिलेशन का सवाल है तो इसे कोई सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली है, लेकिन चूंकि युवा ऐसे संबंधों की ओर आकर्षित होते हैं, क्योंकि कोई भी युवा, चाहे वह पुरुष हो या महिला, अपने साथी के प्रति अपने दायित्व से आसानी से बच सकता है, इसलिए ऐसे संबंधों के प्रति उनका आकर्षण तेजी से बढ़ रहा है। अब समय आ गया है कि हम सभी को इस पर विचार करना चाहिए और समाज में नैतिक मूल्यों को बचाने के लिए कोई रूपरेखा और समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिए”


क्या जबानी जमा-खर्च से ही नैतिक मूल्य बच जाएंगे? यह सब बातें जस्टिस श्रीवास्तव ने कोर्ट में मौखिक रूप से कही हैं, यह सब आदेश का हिस्सा नहीं है। कही गई बातों को ही मिडिया ने रिपोर्ट किया है।


जस्टिस श्रीवास्तव के अनुसार पुरुष हो या महिला, अपने साथी के प्रति अपने दायित्व से बचना चाहते हैं। ऐसा क्यों है, इसपर विचार होना चाहिए।


आज का एक कटुस्त्य है कि कई जोड़े एक साथ रहते हैं, लेकिन उन्होंने शादी नहीं की है। वे वास्तव के व्यभिचार (fornication/adultery) कर रहे हैं। और अगर कोई कहता है कि इसे व्यभिचार मानना सही नहीं है, तो उनसे मैं पूछना चाहता हूँ कि पुरातन काल से ही शादी-विवाह के बाद बने पति-पत्नी वाले परिवार को ही समाज की न्यूनतम इकाई का दर्जा क्यों दिया गया।


जस्टिस श्रीवास्तव के विचारों को समझने के लिए पहले समझना होगा कि विवाह क्या है।


सनातन संस्कृति में ट्रेडिशनल विवाह कोई कांट्रेक्ट नहीं है, बल्कि देवी-देवताओं का आवाहन कर, अग्नि को साक्षी मान कर आयोजित किए जाने वाला एक परित्र संस्कार है। और अग्नि के समक्ष हुए विवाह में प्रतिबद्धता, प्रतिज्ञा, और जीवनपर्यन्त साथ निभाने की एक शपथ इसके महत्वपूर्ण घटक हैं। एक विवाह की सफलता के लिए, पति-पत्नी दोनों लोगों को ही एक दुसरे के साथ रहने, समर्थन करने और सम्भाले रखने की आवश्यकता होती है। विवाह सिर्फ सेक्स करने की स्वतंत्रता या एक छत के नीचे साथ रहने से कहीं ज्यादा है। यह जीवनपर्यन्त एक दूसरे के अच्छे समय में - बुरे समय में, अमीरी में - गरीबी में, स्वस्थ अथवा बिमारी में साथ निभाने की शपथ है। यह एक पुरुष और स्त्री के मध्य एक पवित्र रिश्ता है। एक आदर्श एवं सफल विवाह धैर्यवान, आशावान तथा ईर्ष्या, स्वार्थ और अहंकार रहित प्रेम, समर्पण और प्रतिबद्धता से ही परिभाषित होता है।


अब विवाह इतना परित्र है तो युवाओं का इससे किनारा या मोहभंग क्यों?


विडंबना ही है कि लैंगिक निष्पक्षता के पैरोकारों द्वारा निरंतर हर संभव तरीके से सरकारों व अन्य जिम्मेदारों के संज्ञान में लाने तथा आगाह करने के बाद भी विदेशों से वित्त पोषित वामपंथी महिलावादी संगठनों द्वारा परिभाषित व प्रोत्साहित आधुनिकता एवं पाश्चात्यीकरण के प्रभाव को रोका न जा सका। जिसके चलते खोखला महिला स्वावलंबन, स्वतन्त्रता, आजादी एवं सशक्तिकरण का ढोंग इस जोर-शोर से चल रहा है कि कोई जान ही नहीं पाया कि कब युवतियां विवाह संस्कार पीछे छोड़ लिव-इन रिलेशन के इतने करीब पहुँच गईं।


My Body, My Choice

My Body, My Rules

Smash the Patriarchy

Feminism is for Everybody

A Woman's Place is Wherever She Chooses

I am Woman, Hear Me Roar

Girls Can Do Anything

Reproductive Rights are Human Rights

Break the Glass Ceiling

I'm Not Bossy, I'm the Boss

Girls Just Wanna Have Fundamental Rights

...

...

...

लिस्ट बहुत लम्बी है। विवाह की परिभाषा से कहीं मेल नहीं खाती है, समानांतर दूरी पर है। शादी न महत्वपूर्ण घटकों से असहमत होना उनकी आज़ादी, स्वायत्तता और सशक्तीकरण का पैमाना है, तथा ​​लिव-इन रिलेशनशिप में रहना इनका अधिकार है।


मुझे नहीं पता कि ऊपर लिखे विवाह के बारे में पैराग्राफ से आप कितने सहमत हैं। पर विशवास मानिए, हमारे देश की न्यायपालिका इससे पूरी तरह सहमत है, बस इसको पुरुष और महिला के संदर्भ में लागू अलग-अलग तरीके से किया जाता है।


हमारे देश में कानून निर्माताओं ने ऐसा कानूनी इकोसिस्टम बनाया है, जहां पुरुषों को ट्रेडिशनल विवाह के बाद पत्नी, बच्चों और परिवार के लिए ट्रेडिशनल रोल ही निभाने की अपेक्षा की जाती है। लेकिन महिलाओं के ट्रेडिशनल रोल को उनके लिए abuse या दुर्व्यवहार कहा जाता है। महिला से घर में विवाह कि परिभाषा के अनुरूप व्यवहार की चाह रखना घरेलू हिंसा (domestic violence) की श्रेणी में आता है।


मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा, बस थोड़े शब्दों में इतना ही कहूँगा कि मामले कोर्ट पहुँचते हैं, #AtulSubhash #AtulSubhashSuicideCase #JusticeIsDue जैसे ट्रेंड बनते हैं।


आज के युवक भी ऐसी परिस्थितियों में फसने से बचना चाहता है, जिसका हल वो ​​लिव-इन रिलेशनशिप में ढूंढ़ता है।


सरकारें व अन्य जिम्मेदार लोग जितना जल्दी यह समझ जाएं कि विवाह के बाद पति-पत्नी के मध्य एक दूसरे के प्रति समर्पण भाव ही वामपंथी महिलावादी संगठनों के निशाने पर है, उतना अच्छा होगा।

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