भारत में वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने और भारतीय दंड संहिता की धारा 375 से अपवाद को हटाने की मांग दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका के माध्यम से की जा रही है। इसका सीधा प्रभाव हर दंपति के शयनकक्ष पर भी पड़ेगा।
विदेशों से वित्त पोषित वामपंथी एवं महिलावादी संगठनों द्वारा परिभाषित आधुनिकता एवं पाश्चात्यीकरण के प्रभाव और खोखली महिला सुरक्षा एवं सशक्तिकरण का ढोंग करते हुए नित नई-नई अवधारणाओं से प्रेरणा लेना इतना आसान हो गया है, कि कोई समझ ही नहीं पाया, कब हम विवाह संस्कार को नष्ट करने के इतने करीब पहुँच गए।
वामपंथी महिलावादी लोगों ने भारतीय समाज की समरसता पर कुठाराघात करने के लिए विवाह संस्कार को नष्ट करने का ठाना है।
विवाह पर आधुनिकता एवं पाश्चात्यीकरण का प्रभाव
हिन्दू संस्कृति में विवाह कोई अनुबंध नहीं है, अपितु देवी-देवताओं का आवाहन कर, तथा अग्नि को साक्षी मान कर आयोजित किए जाने वाला एक परित्र संस्कार है।
वामपंथी महिलावादियों के प्रभाव में हमारे देखते देखते सरकार और न्यापालिका ने विवाह की महत्त्व को संकुचित करने के लिए इस हद तक प्रयास किया है कि आज कुछ लोग यह मानने लगे हैं कि उन्हें किसी औपचारिक संस्कार की आवश्यकता नहीं है। उनकी राय में लड़का-लड़की एक साथ रह सकते हैं, बस यही ठीक है। कुछ लोगों का मानना है कि अगर आप सेक्स कर रहे हैं और बच्चे भी पैदा कर रहे हैं, तो आप शादीशुदा ही हैं। शादी वास्तव में क्या है?
विवाह क्या है?
क्या विवाह सेक्स मात्र है? क्या दो शरीरों का एक साथ होकर यौन क्रियाओं में लिप्त हो जाना ही बस विवाह है? नहीं। कोई व्यक्ति अजर किसी वेश्या के साथ यौन संबंध रखता है, वह उसके साथ भी यौन क्रियाओं में लिप्त हो जाता है। क्या इसका मतलब यह है कि वे विवाहित हैं? नहीं, सेक्स शादी को परिभाषित नहीं करता है और न ही शादीशुदा होने के लिए इसकी अनिवार्यता है। आयु बढ़ने के साथ ही सेक्स करने की क्षमता भी क्षीण हो जाती है और जिस कारण एक आयु के बाद लोग सेक्स नहीं कर पाते। क्या इसका मतलब यह है कि वे विवाहित नहीं हैं? नहीं, कुछ नवविवाहित शारीरिक समस्याओं या अन्य अपरिहार्य कारणों से कुछ समय के लिए सेक्स नहीं कर पाते हैं। क्या इसका मतलब यह है कि वे विवाहित नहीं हैं? नहीं।
तो क्या साथ रहना शादी है? नहीं। आज का एक कटुस्त्य है कि कई जोड़े एक साथ रहते हैं, लेकिन उन्होंने शादी नहीं की है। वे वास्तव के व्यभिचार कर रहे हैं। और अगर कोई कहता है कि इसे व्यभिचार मानना उचित नहीं है, तो पुरातन काल से ही शादी, और उसके बाद बने परिवार को समाज की इकाई का दर्जा ही न दिया गया होता। एक साथ घर साझा करना शादी नहीं है। यह एक "महत्वपूर्ण घटक" के बिना शादीशुदा होने का आडम्बर मात्र है।
विवाह के "महत्वपूर्ण घटक"
यह "महत्वपूर्ण घटक" क्या है? प्रतिबद्धता; प्रतिज्ञा; और जीवनपर्यन्त साथ निभाने की एक शपथ। एक विवाह की सफलता के लिए, पति-पत्नी दोनों लोगों को ही एक दुसरे के साथ रहने, समर्थन करने और सम्भाले रखने की आवश्यकता होती है। विवाह सिर्फ सेक्स करने की स्वतंत्रता या एक छत के नीचे साथ रहने से कहीं ज्यादा है। यह जीवनपर्यन्त एक दूसरे के अच्छे समय में - बुरे समय में, अमीरी में - गरीबी में, स्वस्थ अथवा बिमारी में साथ निभाने की शपथ है। यह एक पुरुष और स्त्री के मध्य एक पवित्र रिश्ता है।
आज के व्यावहारिक - भौतिक परिवेश में, जितना सही यह है कि किसी विवाह को सफल बनाने के लिए सेक्स से ज्यादा और भी आवश्यकता होती है, उतना ही सही यह भी है कि सेक्स के बिना एक सफल वैवाहिक जीवन की कल्पना भी कठिन है!
निष्कर्ष
एक सफल विवाह धैर्यवान, आशावान तथा ईर्ष्या, स्वार्थ और अहंकार रहित प्रेम, समर्पण और प्रतिबद्धता से ही परिभाषित होता है। और जब एक विवाह पति-पत्नी के मध्य एक दूसरे के प्रति समर्पण भाव से ओतप्रोत होती है, तब इस रिश्ते में वामपंथी एवं महिलावादी संगठनों द्वारा परिभाषित अनिवार्य आधुनिकता एवं पाश्चात्यीकरण की आड़ में पवित्र वैवाहिक रिश्ते में बलात्कार जैसी घ्रणित अवधारणा को लाना केवल परिवारों का उत्पीड़न करने के लिए एक घातक हथियार तैयार करने का एक षड्यंत्र है। और इस षड्यंत्र का सफल होना विवाह संस्कार को ही समाप्त करने की दिशा में एक और कदम होगा।
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