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Often we come across situations where our members feel uneasy because either they are unable to convey their thoughts to the advocate, hence the court or the advocate isn't listening to the member and pursuing the matter in court as per his own preference. And the situation becomes very hectic when the matter reaches the stage of final arguments.
This is where they are suggested to prepare and file Written Arguments in court!
Written Arguments, often in the form of legal briefs or memoranda, play a crucial role in court proceedings. They serve a lot of purpose:
Clarity and Organization:
Written arguments allow litigant to present complex legal issues in a clear, organized, and structured manner. This helps judges to understand the facts and legal arguments of a case more easily.
They provide a roadmap for the court, outlining the key issues, relevant laws, and supporting evidence.
Detailed Legal Analysis:
Written arguments enable litigants to conduct in-depth legal research and analysis. They can cite relevant statutes, case law, and legal precedents to support their positions.
This level of detail may not always be possible during oral arguments, which are often subject to time constraints.
Preservation of Arguments:
Written arguments create a permanent record of the legal arguments presented in a case. This is particularly important for appellate courts, which review decisions made by lower courts.
They provide a basis for future appeals and can be used to establish legal precedent.
Judicial Efficiency:
By providing judges with written arguments, litigants help to streamline the court process. Judges can review these arguments at their own pace, allowing them to prepare and make informed decisions.
It gives the judges the ability to review information outside of the time constraints of the court room.
Persuasive Communication:
Written arguments allow litigants to craft persuasive narratives that present their cases in the most favorable light.
They provide an opportunity to anticipate and address opposing arguments, strengthening their own positions.
In essence, written arguments are essential tools for litigants to effectively pursue their case and for courts to make well-reasoned decisions.
For the help of all the members in need of preparing written arguments, we've prepared a simple format for the same in Hindi, taking an instance of a case under section 13(1), (1A), (1B) of Hindu Marriage Act.
Please use the format and modify as required.
न्यायालय श्रीमान अपर पारिवारिक न्यायाधीश, कानपुर नगर
वाद सं० ________ वर्ष _________
'वादी का नाम' बनाम 'परिवादिनी का नाम'
अंतर्गत् धारा 13(1),(1ए),(1बी) हि०वि०अधि०
लिखित बहस द्वारा वादी _____________
श्रीमान जी,
विनम्र निवेदन है कि प्रार्थी/वादी अपने वाद पत्र के समर्थन में साक्ष्यों एवं तथ्यों को आधार मानते हुए अपनी लिखित बहस माननीय न्यायालय में दाखिल कर रहा है, जिसे पत्रावली में सम्मिलित कर बहस के रूप में ग्राह्य किया जाना न्यायोचित है। प्रार्थी/वादी ने वाद के तथ्यों एवं साक्ष्यों के आधार पर बहस को मुख्यतः निम्न चार भागों में विभाजित कर अंकित किया है:
1- मुकदमें के तथ्य पृष्ठ 1
2- मुकदमें के साक्ष्य पृष्ठ __
3- मुख्य बहस पृष्ठ __
4- निष्कर्ष पृष्ठ __
मुकदमें के तथ्य (भाग - 1)
1- यह कि, वादी _______ ने अपने धारा धारा 13(1),(1ए),(1बी) हि०वि०अधि० के वाद पत्र के अंत में निम्नलिखित उपशम/रिलीफ प्राप्त करने हेतु न्यायालय से याचना की है:
1- यह कि वादी व प्रतिवादिनी का विवाह (दिनांकित ____), विवाह विच्छेद की डिक्री द्वारा समाप्त किया जावे।
2- यह कि _________________________।
3- यह कि अन्य कोई उपशम/रिलीफ जिसे न्यायालय उचित समझे वादी के पक्ष में व प्रतिवादिनी के विरुद्ध पारित की जावे।
2- यह कि, वादी ने अपने वाद पत्र व शपथपत्र में इस आशय के कथन अंकित किए हैं कि वादी का विवाह दि० ____ को हिन्दू रीति रिवाजों के साथ संपन्न हुआ था।______________________
3- यह कि, _________________________________________
4- यह कि, _________________________________________
---------
--------------
17- यह कि, प्रतिवादिनी __________ ने वादी ____________ के वाद पत्र के खंडन में अपनी आपत्ति तारीखी ____ के माध्यम से पैरा ____ से ____ तक वादी के वाद पत्र को अस्वीकार करते हुए केवल इतना ही स्वीकार किया/कहा है कि ________
18- यह कि, प्रतिवादिनी __________ ने वादी ____________ के वाद पत्र के खंडन में अपनी आपत्ति तारीखी ____ के माध्यम से पैरा ____ से ____ तक वादी के वाद पत्र को अस्वीकार करते हुए केवल इतना ही स्वीकार किया/कहा है कि ________
19- _____________________
20- _____________________
21- यह कि, वादी के वादपत्र तथा प्रतिवादिनी के प्लिडिंग आदि को ध्यान में रखते हुए माननीय न्यायालय ने दि० ____ को निम्नलिखित वाद बिंदु बनाएं है:
1- क्या, ________________
2- क्या, ________________
3- क्या, ________________
मुकदमें के साक्ष्य (भाग - 2)
22- यह कि, साक्ष्य के अंतर्गत वादी ने गवाह की हैसियत से अपने साक्ष्य को शपथपत्र दि० ____ को दाखिल किया है। प्रतिवादिनी ने वादी से पर्याप्त जिरह ही की है।
23- यह कि, वादी ने अपने दस्तावेजी साख्य के अंतर्गत कागजात न्यायालय में निम्न्नानुसार प्रस्तुत किए हैं:
1- फेहरिस्त दिनांकित ____ में
1)
2)
2- फेहरिस्त दिनांकित ____ में
1)
2)
24- यह कि, प्रतिवादिनी ने अपने दस्तावेजी साख्य के अंतर्गत कागजात न्यायालय में निम्न्नानुसार प्रस्तुत किए हैं:
1- फेहरिस्त दिनांकित ____ में
1)
2)
2- फेहरिस्त दिनांकित ____ में
1)
2)
मुख्य बहस (भाग - 3)
25- यह कि, वादी को न्यायालय से न्याय की सख्त आवश्यकता है। वादी प्रतिवादिनी को अपने साथ रखना नहीं चाहता और प्रतिवादिनी भी वादी के साथ रहना नहीं चाहती। पहले प्रतिवादिनी के द्वारा वादी का परित्याग करना, तदोपरान्त प्रतिवादिनी द्वारा वादी व वादी के परिवार का सामाजिक, मानसिक, पारिवारिक व आर्थिक उत्पीड़न किए जाने के कारण, उत्पन्न हुए मानसिक क्रूरता के कारण विश्वास समाप्त हो चुका है। ऐसी दशा में वादी के पक्ष में एवं प्रतिवादिनी के विरुद्ध विवाह विच्छेद की डिक्री पारित किया जाना अतिआवश्यक है।
26- यह कि, ____ (सख्यों/बयानों के आधार पर अपने पक्ष में/विपक्षी के विरुद्ध सिद्ध हुए बिंदु) ___
[जहाँ तक हो सके किसी भी रेफ़रेन्स के लिए पेपर संख्या कोर्ट फाइल की इंडेक्स के अनुसार ही डालें]
27- यह कि, ____ (सख्यों/बयानों के आधार पर अपने पक्ष में/विपक्षी के विरुद्ध सिद्ध हुए बिंदु) ___
28- यह कि, ____ (सख्यों/बयानों के आधार पर अपने पक्ष में/विपक्षी के विरुद्ध सिद्ध हुए बिंदु) ___
----------
---------------------
63- यह कि, ____ (सख्यों/बयानों के आधार पर अपने पक्ष में/विपक्षी के विरुद्ध सिद्ध हुए बिंदु) ___
64- यह कि, प्रतिवादिनी के द्वारा उत्पन्न कारणों की वजह से वादी पूर्णरूप से टूट चुका है और प्रतिवादिनी को अपने जीवन में पत्नी के रूप से स्वीकार करने में असमर्थ है। प्रतिवादिनी द्वारा बिना किसी न्यायोचित कारण के अपने वैवाहिक घर को छोड़ना, सामान्य सहवास की स्थापना में सहयोग न करना, उसको बार-बार सामाज में शर्मिन्दा करना, न केवल वादी के खिलाफ अनर्गल आरोप लगाकर अपितु फर्जी प्रथम सूचना दर्ज कराकर कि वादी, उसके परिवार व रिश्तेदारों ने दहेज मागां; और वादी को इतना मजबूर कर देना कि प्रतिवादिनी व उसके घरवालों के डर से अपने घर पर ताला डालकर रिश्तेदारों, मित्रों के साथ रहे; इस सबसे वादी के साथ साथ उसके माता-पिता को भी अत्यधिक निराशा, कुंठा, वेदना व मानसिक अवसाद हुआ है, जो कि पहले से ही ह्रदय रोगी भी हैं और बहुत अपमान, अत्याचार व उत्पीड़न झेल चुके हैं। प्रतिवादिनी का व्यवहार आपत्तिजनक, अपमानजनक व अप्रिय है और मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है; और जो उदाहरण प्रतिवादिनी ने प्रदर्शित किए हैं, उनके बाद उसके साथ रहकर वैवाहिक जीवन व्यतीत कर, घर बसाना संभव नही है और यह शादी बिना दोबारा जुड़ने की स्थिति तक टूट चुकी है।
65- यह कि, प्रतिवादिनी ने अपना शत्रुतापूर्ण रवैया दिखाकर और वैवाहिक जीवन को असहनीय बनाकर, वादी के प्रति क्रूरता की सारी हदों को पार कर लिया है; क्योंकि वादी और प्रतिवादिनी के बीच ___ साल से अधिक से सहवास भी नही हुआ है, इसलिए प्रतिवादिनी का यह आचरण परित्याग की श्रेणी में आता है; लिहाजा न तो यह सुरक्षित या वांछनीय है और न ही उचित है कि यह वैवाहिक सम्बन्ध जारी रखा जाये। इन परिस्थितियों के अन्तर्गत, पूर्व में घटी घटनाओं के सिद्ध तथ्यों को देखते हुए, वादी को पूर्ण विश्वास हो गया है कि अगर यह वैवाहिक सम्बन्ध किसी भी हद तक, पति-पत्नी कहलाते हुए, अलग रहकर या साथ रहकर, जारी रहा, तो वादी को बार-बार किसी न किसी झूठे मुकदमें में फंसाकर इसी प्रकार प्रताड़ित किया जाता रहेगा, जो कि वादी के जीवन के लिए खतरनाक होगा और वादी का जीवन आत्म हत्या करने सामान हो जायेगा।
66- वादी अपने वादपत्र का समर्थन करने के लिए निम्न केस लॉ/साइटेशन की प्रतियाँ भी दाखिल कर रहा है:
1- माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ‘__________ बनाम _____________’, जिसे ______________ के रूप में रिपोर्ट किया गया है, के पैरा 14 में माना है कि,
"___________________________________________"
2- माननीय मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने ‘__________ बनाम _____________’, जिसे ______________ के रूप में रिपोर्ट किया गया है, के पैरा 6 में बहुत ही सटीक रूप से माना है कि,
"___________________________________________"
निष्कर्ष (भाग - 4)
67- यह कि, प्रस्तुत लिखित बहस व पत्रावली के रिकार्डों को ध्यान में रखते हुए विद्वान न्यायाधीश से प्रार्थना है कि वादी के वाद पत्र के सभी उपषम स्वीकार किये जाने योग्य हैं। विद्वान न्यायाधीश से विनम्र निवेदन है कि आवश्यकतानुसार अन्य वास्तविकता की जानकारी हेतु वादी द्वारा प्रतिवादिनी के विरूद्ध इसी न्यायालय में दाखिल प्रार्थना पत्र अन्तर्गत धारा 340 सी0आर0पी0सी0, प्रकीर्ण वाद सं0 ___ सन् ____ के रिकार्डों का भी अवलोकन करने की कृपा करें, जिससे स्पष्ट हो जायेगा कि प्रतिवादिनी ने झूठ बोलकर माननीय न्यायालय को धोखा दिया है।
68- यह कि, वादी ने अपने मौखिक, दस्तावेजी व डिजीटल साक्ष्यों के माध्यम से अपने वाद पत्र में अंकित कथनों को साबित कर दिया है, अतः वादी के वाद पत्र के सभी उपषम प्रतिवादिनी के विरूद्ध स्वीकार किए जाने योग्य हैं। प्रस्तुत वाद में वाद बिन्दु भी वादी के पक्ष में तथा प्रतिवादिनी के विरूद्ध निर्णीत किए जाने योग्य हैं। प्रतिवादिनी ने झूठ बोलकर वादी व माननीय न्यायालय के समय को नष्ट किया है। प्रतिवादिनी ने प्रस्तुत मुकदमें को एक लम्बे समय तक चलाने के सभी तरीके अजमायें हैं।
69- यह कि, वादी की उम्र इस समय ___ वर्ष की है, वादी का विवाह दिनांक ____ को हुआ था। प्रतिवादिनी का पत्नी धर्म के पालन में भी कोई रूचि नही है। प्रतिवादिनी ने वादी का वैवाहिक जीवन नर्क कर दिया है। कई प्रयासों की असफलताओं को देखते हुए और जान के खतरे को देखते हुए वादी प्रतिवादिनी को हमेशा के लिए त्यागना चाहता है। क्योंकि प्रतिवादिनी के व्यवहार व आचरण में अब कोई सुधार की गुंजाइश नही है और न ही अब प्रतिवादिनी विश्वास के काबिल है, अब कभी भी कोई दुर्घटना पैदा कर सकती है।
वादी ने अपनी प्रस्तुत लिखित बहस के महत्वपूर्ण हिस्से अंकित कर दिये हैं। जिसकी पुनर्रावृत्ति की आवश्यकता नही है। वादी शेष जीवन विवाह विच्छेद के बाद अपने पुत्र/पित्री का लालन पालन करते हुए शांतिपूर्ण ढंग से व्यतीत करना चाहता है। अतः वाद पत्र के सभी उपषम स्वीकार करने की कृपा करें।
श्रीमान जी से प्रार्थना है कि दाखिल लिखित बहस को पत्रावली में सम्मिलित कर बहस के रूप में स्वीकार कर पढ़े जाने की कृपा करें।
वादी माननीय न्यायालय का आजीवन आभारी रहेगा।
वादी
दिनांकः
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