top of page

कट्टर विषाक्त महिलावाद - पिंडदान

Writer: Anupam DubeyAnupam Dubey

कट्टर विषाक्त महिलावाद - #पिंडदान #PindDaan

दामन वेलफेयर ट्रस्ट के सदस्य दिनांक 22 सितंबर 2019 को, सरसैया घाट पर दोपहर 1 बजे विषाक्त महिलावाद का पिंडदान करेंगे, जो की एक राष्ट्रव्यापी मुहीम के तहत, एक ही दिन और समय पर एक साथ करीब 50 शहरों में किए जा रहे समान आयोजनों का हिस्सा है।

आज का कट्टर महिलावाद केवल महिलाओं को अपनी प्राकृतिक मनोवैज्ञानिक/शारीरिक बनावट की स्वीकार्यता में शर्मिंदा होना सिखाता है, तथा बल आधारित हर उन कृत्यों में लिप्त होने को प्रोत्साहित करता है जो की उनके स्वाभाव के विपरीत हैं। इसीलिए, यह कट्टर महिलावाद आंख के बदले आंख, या दांत के बदले दांत लेने में विश्वास नहीं करता। यह मानता है कि कोई भी नरम या न्यायपूर्ण तर्क का सहारा लेना इसे पीछे ढकेल देगा, इसलिए, यह दांत के बदले आंख और आंख के बदले जीवन की मांग करने में विशवास करता है।

इस विषाक्त महिलावाद, जो सबके किए समानता की बात करने की बजाय, हर स्थिति में केवल महिलाओं के वर्चस्व और पुरुषों के विरुद्ध भेदभाव की प्रवृत्ति को ही बढ़ावा देता है, का भी अंत होना चाहिए जिसका कोई भी तर्कसंगत व्यक्ति समर्थन नहीं करता है। इसी कट्टर विषाक्त महिलावाद का हम पिंडदान कर रहे हैं।

पिंडदान इस रूप में क्यों?

सामान्यतया पिंडदान उन पूर्वजों या रिश्तेदारों का लिए किया जाता है जिनकीं या तो मृत्यु हो चुकी हो अथवा जिनको लंबे समय से जीवित न देखा गया हो। एक मान्यता के अनुसार, जिनकी मृत्यु हो चुकी है वो इस भौतिक संसार से मुक्त हो, मोक्ष की ओर अग्रसर हो जाते हैं। यही वह बिंदु है जहां पर पिंडदान का अपना महत्त्व है। पिंडदान एक महत्वपूर्ण पवित्र उपचारात्मक अनुष्ठान है, जो इसे करने वाले व्यक्ति को मृतक के साथ रहे उसके किसी भी रिश्ते से मुक्ति प्रदान करता है।

हमारे साथ बहुत से ऐसे पुरुष हैं जो विषाक्त महिलावाद का दंश या तो झेले हुए हैं, या सह रहे हैं; ऐसे वरिष्ठ नागरिक जिनके परिवार तबाह हो गए हैं, विद्यार्थी जो बलात्कार के झूठे आरोपों के चलते जेल चले गए; ऐसे पिता जो अपने बच्चों को देखने को भी तरसते हैं, ऐसे पति जो या तो अपनी पत्नी द्वारा दाखिल झूठे मुकदमों में फंसे हैं या जिनका विवाह विच्छेद हो चूका है। न्यायालयों में निर्णय आने में विलंब और न्याय न मिलने कारण कई लोग अनावश्यक ही अपने मृत वैवाहिक संबंधों का बोझ ढो रहे हैं। इनमे से कुछ लोग विवाह विच्छेद हो जाने के बावजूद भावनात्मक रूप से यह स्वीकार करने में अक्षम हैं कि उस विषाक्त रिश्ते का समाप्त होना उनके लिए भला ही है। जो पुरुष अपने लिए सुखी एवं समृद्ध परिवार का सपना देखता रहा हो, उसे मात्र इसलिए अचानक कई झूठे आपराधिक और दीवानी के मुकदमों में फंसा दिया गया हो क्योंकि जिस लड़की से उसका विवाह हुआ था, या तो वो नई जिम्मेदारियों के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाई, या फिर वो किसी और से शादी करना चाहती थी, अथवा उसकी शादी में कोई रूचि नहीं थी। ऐसी स्थिति में इन लोगो का इसी तथ्य से विचलित होना स्वाभाविक भी है कि उनके वैवाहिक संबंध उनकी कोई गलती न होने के बावजूद टूट चुके हैं।

ऐसे पुरुष, जिनका यह मानना रहा है कि वैवाहिक सम्बन्ध जीवन पर्यन्त चलने वाला रिश्ता है तथा जिसके लिए उन्होंने अपनी प्रतिबद्धताओं की भी पूर्ती की हो, और इस सोच के बिलकुल विपरीत जिसके वैवाहिक सम्बन्ध को अचानक नष्ट कर दिया गया हो, ऐसे पुरुषों के लिए पिंडदान मन एवं मष्तिष्क में उत्पन्न हुए क्लेश को शांत करने में सहायक होगा। यह अनुष्ठान उस मानसिक हिसाब-किताब की तरह उपयोगी होगा, जिसमे स्वेच्छा से आप अपने अतीत से मुक्ति पाकर नए सिरे से जीवन की शुरुआत कर सकते हैं।

पूर्व में भी अनेकों बार देखने में आया है कि जब कोई पिता अपनी पुत्री द्वारा जीवनसाथी की पसंद पर असहमति जताता है, तो वह उस पुत्री को मृत मान उससे सम्बन्ध समाप्त करने के लिए उसका पिंडदान कर देता है। ऐसे भी उदाहरण हैं कि दो भाइयों के मध्य विवाद होने पर एक भाई अपने जीवित भाई को स्वयं के लिए मृत घोषित कर उसका पिंडदान कर देता है।

इसी प्रकार, ये पति भी अपनी पत्नियों से संबंधों का अंत करते हुए उनका पिंडदान करेंगे। यह अनुष्ठान उन पुरुषों को अवश्य ही एक संतोषजनक अनुभव प्रदान करेगा, जो अपने विषाक्त संबंधों को त्याग कर जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं।

हम, समाज में व्याप्त विषाक्त महिलावाद, जो सबके किए समानता की बात करने की बजाय, हर स्थिति में केवल महिलाओं के वर्चस्व और पुरुषों के विरुद्ध भेदभाव की प्रवृत्ति को ही बढ़ावा देता है, का अंत करना चाहते हैं, इसलिए आज विषाक्त महिलावाद का पिंडदान किया।

क्या इसका कोई धार्मिक महत्व है या शास्त्रों से इसका अनुमोदन है?

पिंडदान, एक धार्मिक अनुष्ठान से अधिक एक उपचारात्मक अनुष्ठान है, साथ ही यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह भी है कि हिंदू धर्म विवाह विच्छेदन का भी अनुमोदन नहीं करता है। इन लोगों को मानना है कि उनके वैवाहिक रिश्ते केवल सामाजिक अथवा कानूनी रूप से समाप्त हुए हैं, न की धार्मिक ग्रंथों के अनुसार। इन परिस्थितियों में, यह अनुष्ठान इन पुरुषों के लिए इस तथ्य से निरपेक्ष की शास्त्रों से इसका अनुमोदन होता है या नहीं, नये सिरे से जीवन प्रारम्भ करने के लिए परिवर्तन के क्षण प्रदान करेगा।

क्या यह किसी के विरुद्ध है?

यह केवल पुरुषों की मदद हेतु है, किसी के भी विरुद्ध नहीं है। सामान्यतया, महिलावाद किसी भी विषाक्त रूप में नहीं होना चाहिए और कोई भी तर्कसंगत व्यक्ति इसका समर्थन नहीं करेगा।

Talk to our volunteer on our #Helpline

8882-498-498

Single Helpline Number For Men In Distress In India

Join our mailing list!  Stay up-to-date on upcoming projects, offers & events.

Thanks for subscribing! Welcome to Daaman!

  • Follow Daaman on Facebook
  • Follow Daaman on Twitter

©2018-2020 Daaman Welfare Society & Trust.

All rights reserved.

Beware, anyone can be a victim of gender bias in society and laws! 

Don't wait: Schedule a conversation with a trusted, experienced Men's Rights Activist to find out how only awareness is the key to fight and remove prevailing gender bias against men in society.
bottom of page