![तो यूँ ही फंसते रहेंगे मुकदमों में रिश्तेदार...](https://static.wixstatic.com/media/180b2a_2573ddb47e2146ebab281f2bcdaf0a17~mv2.png/v1/fill/w_90,h_56,al_c,q_85,usm_0.66_1.00_0.01,blur_2,enc_auto/180b2a_2573ddb47e2146ebab281f2bcdaf0a17~mv2.png)
कारण, पूरी व्यस्था भ्रष्ट है... विवेचना का पैमाना केवल इतना है कि कौन सा पक्ष पैसे से मजबूत है और कितना खर्चा कर रहा है पुलिस पर...
न्यायपालिका में भी पीठासीन अधिकारी केवल बाबू की भांति नौकरी करते हैं, अगर न्याय करें तो पूरी सजा या एक बड़ा हिस्सा जेल में काटने के बाद उच्च/उच्चतम न्यायालय से कोई बरी न हो।
![](https://static.wixstatic.com/media/180b2a_91c6d93544c34dfe91a3f1b751bb1d6c~mv2.jpg/v1/fill/w_108,h_115,al_c,q_80,usm_0.66_1.00_0.01,blur_2,enc_auto/180b2a_91c6d93544c34dfe91a3f1b751bb1d6c~mv2.jpg)
अधिवक्ताओं का काफी हद तक सही मानना है:
जो लोग रिपुर्ट दर्ज कराते हैं उन पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला
ससुराल वालों को सबक सिखाने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है
फर्जी रिपोर्ट लिखाने वालों के खिलाफ अदालत और पुलिस द्वारा कड़ी कार्यवाही न होना भी बड़ा कारण है
आम सोच है कि जितने ज्यादा रिश्तेदार फंसते हैं, ससुराल पक्ष पर उतना ही बड़ा दबाव बनता है
अपनी शर्तो पर समझौते के रास्ते भी खुलते हैं
अगर अपेक्षा यह है कि लोग कानून का पालन करें ताकि कोई निर्दोष न फँस सके, तो न्यायपालिका की आवश्यकता ही क्या है?