बनारस घाट पर 150 पत्नी पीड़ित पुरुषों ने अपनी जिंदा पत्नियों का पिंडदान कर पिशाचिनी मुक्ति पूजा की. ये सभी पति अपनी पत्नियों से प्रताड़ित हैं. इस मौके पर उन्होंने कहा कि देश में जानवरों की सुरक्षा के लिए मंत्रालय है लेकिन पुरुषों की सुरक्षा के लिए कोई मंत्रालय या संस्था नहीं है.
वैसे तो कहा जाता है कि गंगा नदी में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं लेकिन पत्नियों से पीड़ित पुरुषों ने बनारस आकर पहले अपनी पत्नियों के नाम पर पिंड दान किया और फिर पिशाचिनी मुक्ति पूजा की. पत्नियों के हाथों सताए पीड़ित पुरुषों की संस्था सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन के दस साल पूरे होने पर आयोजित इस पूजा में करीब डेढ़ सौ लोगों ने हिस्सा लिया.
इस संस्था के फाउंडर राजेश वकारिया ने कहा कि हमारे देश में जानवर संरक्षण के लिए भी मंत्रालय है लेकिन मर्दों के हक की रक्षा के लिए कहीं कोई मंत्रालय नहीं है. यानी इस देश में मर्दों को जानवर से भी बदतर समझा जाता है.
एक और पत्नी पीड़ित अमित देशपांडे ने पतियों को अपनी पत्नियों का पिंडदान करने को कहा. उन्होंने कहा कि इन पत्नियों ने अपने-अपने पतियों की जिंदगी नरक कर दी है. उनसे दिमागी शांति छीन ली है. इन पत्नी पीड़ित पुरुषों ने जीते जी अपनी पत्नियों का पिंडदान किया जो अब उनके साथ नहीं रहती हैं साथ ही साथ अपनी पूर्व पत्नियों के लिए पिशाचिनी मुक्ति पूजा भी की ताकि उनकी पत्नी से जुड़ी बुरी यादें भी उनके साथ ना रहें.
SIFF के संस्थापक वकारिया ने कहा कि हर साल 92 हजार पुरुष मेंटल टॉर्चर की वजह से आत्महत्या कर लेते हैं जबकि महिलाओं में ये आंकड़ा 24 हजार का है. वकारिया ने कहा कि दहेज विरोधी कानून यानी आईपीसी की धारा 498ए महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने और पति के घर में पत्नी के शोषण को रोकने के लिए बनाई गई थी लेकिन पुरुषों के खिलाफ कई बार इस कानून का दुरुपयोग होता है और पुरुष इसके खिलाफ कुछ नहीं कर सकता.
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