जिले में आए दिन दहेज एवं घरेलू प्रताड़ना के मामले दर्ज होते हैं। इनमें से औसतन 41 फीसदी मामले पुलिस जांच में झूठे पाए जाते हैं। जिले में वर्ष 2017-18 के पुलिस आंकड़ों के अनुसार डेढ़ वर्ष की अवधि के दौरान 534 मामले दहेज एवं घरेलू प्रताड़ना के दर्ज हुए। उनमें से 223 मामले यानी 41.76 फीसदी मामले जांच में झूठे पाए गए। इनमें पुलिस ने एफआर लगा दी। थोड़ा सा भी वैवाहिक अनबन होते ही विवाहिता एवं उसके परिजन पहले पुलिस थानों में दहेज प्रताड़ना की झूठी शिकायत दर्ज करवाते हैं और फिर समझौते के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है। अक्सर दहेज प्रताड़ना की शिकायत में पीड़िता मुख्य तौर पर पति, सास, ससुर, ननद, देवर, जेठ आदि का नाम दर्ज कराते हैं। पिछले दिनों में ऐसे ही आंकड़ों पर गौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि शिकायतकर्ता कानून का दुरुपयोग कर रहे हैं। कोर्ट ने इसमें पुलिस को आरोपी को तुरंत गिरफ्तार करने पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने गाइड लाइन जारी की थी कि इन मामलों में जांच के बाद ही गिरफ्तारी की जाए। अगर पुलिस जांच में मामला झूठा पाया जाए तो पुलिस उसे रद्द भी कर सकती है। लेकिन हकीकत यह है कि पुलिस झूठे मामलों को रद्द तो कर देती है लेकिन झूठे मामले दर्ज करने वाले लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई अमल में नहीं लाई जाती। परेशानी यह....गुजारा भत्ता देने के मामले में खारिज हो रहे अधिकांश आवेदन
गत वर्षों के दौरान भारत में पारिवारिक अदालतों ने वैवाहिक विवादों में गुजारा भत्ता देने के चले आ रहे प्रचलन को तोड़ना शुरू कर दिया है। दहेज तथा घरेलू हिंसा कानूनों के बढ़ते दुरुपयोग का हवाला देते हुए अदालतें अब प|ियों को खुद की देखभाल करने के लिए पर्याप्त रूप से कमाई करने की स्थिति में गुजारा भत्ता आवेदन खारिज कर रही हैं। कुछ मामलों में तो पतियों को गुजारा भत्ता देने के प|ियों को निर्देश दे रही हैं। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय अदालतें, प|ियों को हमेशा गुजारा भत्ता देने की पारंपरिक प्रथा का अनुसरण करने के अतिरिक्त अब बड़ी संख्या में पतियों के पक्ष में आदेश पारित कर रही हैं। पुलिस के आंकड़ों में यह सच आया सामने जिले में सर्वाधिक 197 मामले महिला थाने में दर्ज हुए हैं। इसमें इस साल वर्ष 2017-18 में जनवरी से जून तक 99 मुकदमे दर्ज किए जा चुके हैं। इसके अलावा जिलेभर के पुलिस थानों में रोजाना समझाइश कर कई परिवारों को टूटने से बचाया जा रहा है। पुलिस कार्रवाई के अभाव में बढ़ा झूठे मुकदमों का ग्राफ: झूठे मुकदमे दर्ज करवाने पर पुलिस द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 182, 211 के तहत आरोपियों पर कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें अधिकतम 5 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है। पीड़िता की ओर से दर्ज कराए जाने वाले दहेज प्रताड़ना के मामलों में करीब आधे मामले पुलिस जांच में झूठे ही पाए जाते हैं। दरअसल वे दहेज प्रताड़ना के नहीं, अपितु केवल प्रताड़ना के ही होते हैं, जिनमें पति द्वारा शराब आदि पीकर प|ी को तंग परेशान किया जाता है। इनमें अक्सर काउंसलिंग के बाद पति-प|ी में समझौता करा दिया जाता है। पुलिस पर जांच का दबाव तो रहता है, पर पुलिस पीड़ित को न्याय दिलाने के साथ किसी निर्दोष को भी नहीं फंसने देती। हरेंद्र कुमार, एसपी।
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